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याद जब आई कभी, आंसू निकल कर बह गये / महावीर शर्मा

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याद जब आई कभी, आंसू निकल कर बह गये
क्या कहें इस दिल की हालत, शिद्दते-ग़म सह गए

गुफ़्तगू में फूल झड़ते थे किसी के होंट से
याद उनकी ख़ार बन, दिल में चुभो के रह गए

जब मिले मुझ से कभी, इक अजनबी की ही तरह
पर निगाहों से मिरे दिल की कहानी कह गये।

प्यार के थे कुछ लम्हे, यादों के नग़मे बन गए
वो ही नग़मे साज़े-ग़म पर गुनगुना कर रह गए

दो क़दम ही दूर थे, मंज़िल को जाने क्या हुआ
फ़ासले बढ़ते गये, नक्शे-क़दम ही रह गए

दिल के आईने में उसका, सिर्फ़ उसका अक्स था
शीशा-ए-दिल तोड़ डाला, ये सितम भी सह गए

ख़्वाब में दीदार हो जाता तेरी तस्वीर का
नींद भी आती नहीं, ख़्वाबी-महल भी ढह गये