सावन के मनहर मेघों-सी छाई याद तुम्हारी।
निधे! भोर की प्रथम किरण-सी आई याद तुम्हारी।
कितनी कोमल, कितनी चंचल, अनुपम स्वर्णपरी-सी,
किसी तृषित के लिए मिली कोई अमृत-गगरी सी।
भीनी-भीनी-सी सुंगध अमराई, याद तुम्हारी!
प्रति दिन अब शुभ दिन है शुभगे, जबसे हुआ मिलन है।
स्यात्, पूर्व जन्मों का अपने, कोई पुण्य फलन है॥
पूर्ण चन्द्र-रजनी की ज्यों ठंडाई, याद तुम्हारी!
दो से मिलकर एक बनेंगे, दिन आएगा सत्वर!
सिन्दूरी क्षिति पर मिलते ज्यों यह धरती यह अम्बर।
सान्ध्य-गगन सी आँखों को है भायी याद तुम्हारी!