याद तेरी जो आँखों में आने लगी
नींद ख़्वाबों को तबसे सजाने लगी
पत्थरों को पता उसके घर का दिया
जब वफ़ा मुझसे दामन बचाने लगी
काम आई नहीं दोस्ती आपकी
जो अना को मेरी आज़माने लगी
इस तरह ज़िन्दगी रात से डर गई
घर जला रौशनी को बुलाने लगी
हुस्न की बेलिबासी ज़रा देखिए
इश्क़ की तिश्नगी को बढ़ाने लगी