भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद / रामफल चहल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(आकाशवाणी चुरू से वापसी के बाद)

बागड़ (चुरू) तैं मैं उल्टा आ लिया आवै इब्बी याद भतेरी
ताती लू खारा पाणी आग उगलती थी दोफारी
पाणी डूंगै टीब्बे ऊंचे नये नवेले भेष म्हं नारी
खिंपोली अर सांगरी होवै काचरी खावैं मिट्ठी खारी
पीच्छू अर पीहल लागैं सबतै घणा मतीरा पावै
सीना ताणे खड़या रोहिड़ा लाल अर पीले फूल खिलावै
कठिनाइयां न क्यूंकर झेलो या बात सिखावै रेगिस्तान
बाजरी अर ग्वारफली खा मर्दाने हों उड़ै जवान
बाटी अर चूरमा खाया इब फीके लागैं छप्पन भोग
उडै़ रहकै सब भूल्या था मैं मामा-फूफी मेरा-तेरी
बागड़ (चुरू) तैं मैं उल्टा आ लिया आवै इब्बी याद भतेरी