भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यानि कानि च मित्राणि / श्लोक
Kavita Kosh से
यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च ।
पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥
जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे ।