यायावर मन / गुलशन मधुर
झूठे गंतव्यों की राह न कर मन!
कब तक यों भटकेगा यायावर मन!
जाने किन संयोगों के बीजों से
नन्ही-सी कोंपल पर सपने उगे
और तूने ललचाए हंस की तरह
आसों के कितने ही मोती चुगे
आसें हैं, कब पूरी होती हैं ये
आसों की इतनी भी आस न कर मन!
अक्सर घटने वाली घटना है यह
रस्ता है, संग-साथ हो जाता है
यात्रा से जुड़ा हुआ जोखिम है यह
मिलते मिलते कोई खो जाता है
ऐसा अनहोना भी नहीं बिछुड़ना
इतना भी अचरज मत कर, कातर मन!
माना सुख से दुख की ऋतु लम्बी है
मौसम के काँटे पर सुख दुख मत तोल
हंसते गाते बीते जो थोड़े पल
उस छोटी-सी ऋतु का ही है कुछ मोल
ले सहेज वे पल, जिनमें युग बीते
दुखती यादों का बन मत चाकर मन!
अभी और यात्रा है शेष, आ चलें
सहज राह चलने का ध्येय लिए हम
यह भी क्या कुछ कम है अब से होंगे
सुधियों का सुखकर पाथेय लिए हम
आगे के अनपहचाने रस्ते भी
कट ही जाएंगे आख़िर जाकर मन!