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यायावर मेरा मन / इंदिरा शर्मा
Kavita Kosh से
अरे !
ये यायावर मेरा मन |
खोजता निशिदिन , हिम श्रृंगों से
प्रवाहमान गंगा – अवतरण |
कल - कल , छल - छल बहती
करती गिरि कंदराओं का मन प्रसन्न
इस सौन्दर्य का न आदि – अंत |
फैला दूर – सुदूर , हरित आँचल
वेदी - धरा , धूम उठता गगन मंडल
करता हव्य ग्रहण , प्रातः पूजन |
आचमन जल शुद्ध , पवित्र गंगा जल
शुद्ध मलय समीर , सुगंद्धित अगुरु औ’ चन्दन
मौन , शांत , नित करता गुरु दर्शन
मेरा प्रातः वंदन |
अरे !
ये यायावर मेरा मन |
दिवा – अवसान का क्षण
क्षितिज – कोर पर बैठ , मूंद आँख
पूर्व दिग दिगंत
करता सांध्य तारा दर्शन
है अबोध मन ,
फिर रात्रि गहन चिंतन
करता सृष्टि में व्याप्त संगीत चिरंतन
ये मेरा रात्रि मंथन
अरे !
ये यायावर मेरा मन |