भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यायावर से लगते दिन / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
हवाओं पर उड़ कर
न जाने कहाँ से आते दिन
सुबह भीगी, धूप भीनी
पक्षियों के संग उ़ड़ते
कुसुमित होते दिन
दोपहर में अलसाये-से, उनींदें-से
अच्छे लगते दिन
बादलों के पंख लगा कर
उड़ते चलते दिन
साँझ ढ़ले छत पर थोड़ा-सा
धूप सेंक कर
वृक्षों में छुप जाते दिन
आते हैं, कुछ देर ठहर कर
और कहीं पर जाते दिन
सोते नही, जागते नही
यायावर-से लगते दिन।