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याराना जब पत्थर से / अमरेन्द्र
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याराना जब पत्थर से
क्या घबराना ठोकर से
लौट नहीं अब आयेगा
निकला है अपने घर से
कट जायेगा फूलों-सा
बतियाता है खंजर से
भीतर-भीतर आग दिखा
बर्फ था जितना बाहर से
नदी गाँव की याद आई
मिल आया जब सागर से
कल तक जीवन को तरसा
मौत की खातिर अब तरसे
जीने का ढंग जान गये
मिले थे क्या अमरेन्दर से।