भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया / हैदर अली 'आतिश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर ताला-ए-बेदार ने सोने न दिया

ख़ाक पर संग-ए-दर-ए-यार ने सोने न दिया
धूप में साया-ए-दीवार ने सोने न दिया

शाम से वस्ल की शब आँख न झपकी ता सुब्ह
शादी-ए-दौलत-ए-दीदार ने सोने न दिया

एक शब बुलबुल-ए-बे-ताब के जागे न नसीब
पहलु-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने न दिया

रात भर कीं दिल-ए-बे-ताब ने बातें मुझ से
रंज ओ मेहनत के गिरफ़्तार ने सोने न दिया

सच है ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार अज़ाब-ए-जाँ है
ता दम-ए-मर्ग दिल-ए-ज़ार न सोने न दिया