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यार मायल-ब-जफ़ा है तो चलो यूँ ही सही / कांतिमोहन 'सोज़'
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यार मायल-ब-जफ़ा<ref>ज़ुल्म पर उतारू</ref> है तो चलो यूँ ही सही ।
उसकी ऐसी ही रज़ा<ref>इच्छा</ref> है तो चलो यूँ ही सही ।।
दिल के नालों<ref>फ़रियाद</ref> को ज़बां तक कभी आने न दिया
ये अगर उसकी सज़ा है तो चलो यूँ ही सही।
सरफ़रोशी भी मेरे नाम पे तोहमत होगी
जग में ऐसी ही फ़ज़ा है तो चलो यूँ ही सही।
अपने कान्धे पे उठाएगा हर एक अपनी सलीब
अब ये दस्तूरे-वफ़ा है तो चलो यूँ ही सही ।
दिल ने सौ बार डबोई है ख़िरद<ref>अक़्ल</ref> की कश्ती
आज खुद डूब रहा है तो चलो यूँ ही सही ।
शेख तो मय को बताता है अज़ाबों का अज़ाब<ref>सबसे बड़ा पाप</ref>
यार कहते हैं दवा है तो चलो यूँ ही सही ।
सोज़ के सर का ज़माने में कोई मोल न था
वो अगर मांग रहा है तो चलो यूँ ही सही ।।
शब्दार्थ
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