याहि मत जानौ है सहज कहै रघुनाथ,
अति ही कठिन रीति निपट कुढँग की ।
याहि करि काहू काहू भाँति सो न कल पायो ,
कलपायो तन मन मति बहु रँग की ।
औरहू कहौँ सो नेकु कान दै के सुन लीजै ,
प्रगट कही है बात बेदन के अँग की ।
तब कहूँ प्रीति कीजै पहिले ही सीख लीजै ,
बिछुरन मीन की औ मिलन पतँग की ।
रघुनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।