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या तो कुछ ज़ोर से सुनाने दे / कांतिमोहन 'सोज़'
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या तो कुछ ज़ोर से सुनाने दे ।
या मुझे कुछ क़रीब आने दे ।।
या तो कह दे कि ख़ून बहता है
अश्क है तो मुझे बहाने दे ।
बर्क़ से क्यूँ अभी से सरगोशी
आशियां तो मुझे बनाने दे ।
किसलिए इस क़दर निगहबानी
दिल में कोई ख़राश आने दे ।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं लगती
मुझको कोई फ़रेब खाने दे ।
जश्न में तू मुझे शरीक न कर
पर मुझे जाम तो उठाने दे ।
सोज़ भी चाहता था कुछ कहना
तू न समझेगा ख़ैर जाने दे ।।