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या तो हर ज़ुल्म को चुप रहके गवारा कर लो / कांतिमोहन 'सोज़'

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या तो हर ज़ुल्म को चुप रहके गवारा कर लो ।
वरना आज़ाद हो दुनिया से किनारा कर लो ।।

हर क़दम फूँक के रखते हैं ज़माने वाले
ज़िन्दगी प्यार नहीं है कि दुबारा कर लो ।

क्यों उसे घर से भगाने पे तुले हो यारो
उसकी सौग़ात है ग़म जान से प्यार कर लो ।

जग की तक़दीर तो क़ौमों से बना करती है
दिल कुशादा करो मेरे को हमारा कर लो ।

लोग तो रोज़े-क़यामत से भी बच रहते हैं
ज़ीस्त के वास्ते तिनके को सहारा कर लो ।

मेरी मानो तो मुसीबत से न मूंदो आँखें
एक मंज़र है ये इसका भी नज़ारा कर लो ।

आज तो बाग़ की हर शाख़ पे क़ाबिज़ हैं वही
सोज़ कुछ रोज़ तो काँटों से गुज़ारा कर लो ।।