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या दुनियाँ झुलसी सारी, इस मंहगाई की आग मैं / जय सिंह खानक

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या दुनियाँ झुलसी सारी, इस मंहगाई की आग मैं
या दुनियाँ..
 
हल्दी, लाल मिर्च के भाव तै, लोगां के चेहरे लाल हुऐ
मिर्च-रोट खावणिये भी, भा सुणके नैं बेहाल हुऐ
ये लाला माला-माल हुऐ, इस मंहगाई के बाग मैं
या दुनियाँ..
 
दाल और चीनी चढ़े आस्माँ, ओर भी चढ़ते जावैं सै
घर का बजट बिगड़ग्या सारा, पैंधरबारी मरते जावैं सै
ये घुट-घुट के बतलावैं सैं, कहैं आग लगीम्हारे भाग मैं
या दुनियाँ..
 
घी और तेल का हाल बुरा, चिकनाई खत्म हुई सारी
दुध कम और पानी ज्यादा, मलाई खत्म हुई सारी
कहैं किस्मत फुटी म्हारी, इस कांग्रेस कै राज मैं,
या दुनियाँ..
 
सब्जी-फल ना देखण पांवां, ये इसे कसुते हाल हुऐ
दवा-दारू ना मिल टेम पै, सब तरियाँ तै काल हुऐ
कमेरां के बुरे हाल हुऐ, इस पूंजीवाद दाग मैं
या दुनियाँ..
 
सही वक्त पै ना चुल्हा बलता, इस मकंहगाई की मार मैं
सपने और अरमान बह गऐ, इस भ्रष्टाचार की धार मैं
यो जयसिंह रहा हार मै, क्यू विश्वास करा इसे त्याग मैं
या दुनियाँ..