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या रब कैसे इतनी आई / हरि फ़ैज़ाबादी
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या रब कैसे इतनी आई
दुनिया में ख़ुदग़र्ज़ी आई
पता नहीं क्यों जयचन्दों को
रास हमेशा दिल्ली आई
रात में तो जाने दो उसको
सारे दिन तो बिजली आई
आज मुझे एहसास हुआ कल
क्यों रस्ते में बिल्ली आई
बँटना सबने माना घर में
लेकिन आड़े खिड़की आई
हर कोई है परेशान तो
ख़बर कहाँ से अच्छी आई