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युग-कवि / महेन्द्र भटनागर

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मेरे भावों का वेग प्रखर,
मेरी कविता की पंक्ति अमर,
मेरी वीणा युग-वीणा है
कब मौन हुए हैं उसके स्वर ?
मैं तो गाता रहता प्रतिपल !

मेरे स्वर में है आकर्षण,
आकर्षण में जाग्रत जीवन,
जीवन में आशा-कांक्षा का
रखता मादक नूतन यौवन,
करते जगमग लोचन निश्छल !

मेरा युग दीख रहा उज्वल,
नर्तन करते तारे झलमल,
जिसकी धरती पर बहती है
शीतल-धार-सुधा की अविरल,
छाये रहते जीवन-बादल !:
1944