भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युद्ध अभी जारी है / अरविन्द भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे ही पता चलती है
जाति मेरी
उनके चेहरे की रंगत
डूबते सूरज की तरह
खो जाती है क्षितिज में कहीं
छा जाता है सन्नाटा
ठीक तूफान आने के पहले की तरह
टूटता है उम्मीदों का बांध
बह जाती है योग्यता मेरी
जैसे बहता है पानी
दरिया में कहीं

शुरू होता है एक अघोषित युद्ध
वो सभी झुण्ड में है
और मैं अकेला
युद्ध अभी जारी है।