युद्ध से वापसी / सुशान्त सुप्रिय
मेरा सबसे अच्छा मित्र
युद्ध में घायल हो कर
वापस घर लौटा था
उसके चेहरे पर
दर्द के अमिट निशान थे
उसकी आँखों में से
एक गहरी खाई
बाहर झाँक रही थी
उसकी देह
कई जगहों से घायल थी
उसका अंतर्मन
न जाने कहाँ-कहाँ से
आहत था
कभी-कभी वह
इतनी ज़बानों में
इतना अधिक बोलने लगता कि
समझना मुश्किल हो जाता
कभी-कभी वह
इतना चुप रहता कि
मौत का अँधेरा
उसकी आँखों में उतर आता
उसके ज़हन में हमेशा
युद्ध के प्रेत मँडराते रहते
कभी वह नींद में चलने लगता
कभी खुली आँखों से सो जाता
कभी उसकी आँखों में हमारे लिए
पहचान का सूर्यास्त हो जाता
कभी वह जानी-पहचानी
जगहों पर भी खो जाता
उसके घरवाले कहते थे कि
युद्ध के प्रभाव से
वह 'हिल गया' था
लेकिन मेरे लिए
इतना ही काफ़ी था कि
युद्ध में लड़ने गया
मेरा सैनिक मित्र
मुझे वापस मिल गया था