कितने युद्धों की बनूँ मैं साक्षी 
हर क़दम की दूरी पर 
नींव पड़ती नए युद्ध की 
समेटने का क्रम नाकाफी
विस्थापन का विस्तार 
उजाड का फैलाव 
होता जा रहा अनंत 
न आप, न मैं
कदाचित कभी न गुज़रेंगे
युध्द की इति के उत्सव से
यह फसल
आयुधों की लहलहाती 
पहुँचाएगी हमें 
शायद 
सृष्टि के पतझड़ तक
कैसा यह
विनाश का ये खेल ...