यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है / ओक्ताविओ पाज़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य
मेरी आवाज़ सुनो, यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है,
ध्यान से नहीं, बेपरवाह नहीं,
हलके से क़दम, झिरझिराता हुआ,
पानी जो हवा है, हवा जो वक़्त है,
दिन विदा लेता हुआ,
रात अभी आई नहीं,
कुहरा शक़्ल लेता हुआ
जहाँ मोड़ बनता है,
वक़्त शक़्ल लेता हुआ ।
इस विराम के मोड़ पर,
मेरी आवाज़ सुनो, यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है ।
बिना सुने, सुनो मैं क्या कहता हूँ
आंखें अन्दर खुली हुईं, नींद से बोझल
और होशो-हवास दुरुस्त,
पानी बरसता है, हलके से क़दम, सरसराहट,
हवा और पानी, लफ़्ज़ बिना वज़न के :
हम क्या हैं और क्या हैं,
दिन और बरस, यह लमहा,
बिना वज़न का वक़्त और बोझिल दुख,
मेरी आवाज़ सुनो, यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है ।
भीगा डामर चमकता है,
भाप उठती है और बह-सी जाती है,
रात उभरती है और मुझे देखती है,
तुम तुम हो और भाप से बना तुम्हारा शरीर,
तुम और रात से बना तुम्हारा चेहरा,
तुम और तुम्हारे बाल, आहिस्ते से बिजली की चमक,
इस पार आती हो तुम और मेरी पेशानी में दाख़िल,
मेरी आँखों के ऊपर पानी के क़दमों की चाप ।
मेरी आवाज़ सुनो, यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है ।
डामर चमकता है, तुम इस पार आती हो,
यह कुहरा है, रात में भटकता हुआ,
यह रात है, तुम्हारे बिस्तर में नींद मे डूबी हुई,
यह लहरों की उफ़ान है तुम्हारी साँसों में बसी हुई,
पानी की तुम्हारी उँगलियों से नम मेरी पेशानी,
आग की तुम्हारी उँगलियों से दहकती मेरी आँखें,
हवा की तुम्हारी उँगलियों से खुलती वक़्त की पलकें,
मँज़र उभरते हैं नई ज़िन्दगी के ।
मेरी आवाज़ सुनो, यूँ जिस तरह बारिश को सुना जाता है ।
बरस गुज़र जाते हैं, लमहे लौट आते हैं,
सुनती हो पास के कमरे में उनके क़दमों की चाप ?
यहाँ नहीं, वहाँ नहीं : तुम उन्हें सुनती हो
एक अलग वक़्त में जो अब है,
सुनो वक़्त के क़दमों की चाप,
जो जगह तैयार करते हैं जिनका कोई वज़न नहीं, जो कहीं नहीं,
आँगन में बहती बारिश को सुनो,
यह रात बाग़ों के बीच कहीं अधिक रात है,
बिजली की चमक पत्तों से चिपकी हुई,
एक बेचैन बाग़ में भटकती हुई,
तुम्हारा साया छाया हुआ इस पन्ने पर ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य