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यूँ मेरे पास से हो कर ब गुज़र जाना था / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
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यूँ मेरे पास से हो कर ब गुज़र जाना था
बोल ऐ शख़्स तुझे कौन नगर जाना था
रूह और जिस्म जहन्नम की तरह जलते हैं
उस से रूठे थे तो इस आग को मर जाना था
राह में छाँव मिली थी के ठहर सकते थे
इस सहारे को मगर तंग-ए-सफ़र जाना था
ख़्वाब टूटे थे के आँखों में सितारे नाचे
सब को दामन के अँधेरे में उतर जाना था
हादसा ये है के हम जाँ न मुअत्तर कर पाए
वो तो ख़ुश-बू था उसे यूँ भी बिखर जाना था