यूँ रोते नही शामो–सहर, सब्र तो करो
कहती है अभी राहगुज़र सब्र तो करो
छालों के कई दाग दिये खैरख्वाह ने
चमकेंगे यही दाग़ मगर सब्र तो करो
देता है कड़ी धूप वही बख्शता कभी
ज़ुल्फ़ों की घनी छाँव बशर, सब्र तो करो
मंज़िल के लिये शहर में घूमो न दरबदर
आयेगी वो ज़ीने से उतर सब्र तो करो
आयी न वफ़ा रास हबीबों को गर तेरी
हमराह हैं खुर्शीदो-क़मर सब्र तो करो