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यूँ सड़क तक छोड़ने भी आपको आएँगे लोग / पवनेन्द्र पवन
Kavita Kosh से
यूँ सड़क तक छोड़ने भी आपको आएँगे लोग
आपकी निंदा ही करते लौट कर जाएँगे लोग
हर मसीहा को यहाँ सूली पे लटकाएँगे लोग
और फिर अपने किए पर ख़ुद ही पछताएँगे लोग
होंठ सी कर आदमी को बोलने देंगे नहीं
बोलना तोतों को लेकिन ख़ूब सिखलाएँगे लोग
हमने थे बाँटे यहाँ जो रोशनी के वास्ते
क्या पता था उन दीयों से आग भड़काएँगे लोग
जिनकी आँखों पर भरोसा था तुझे इतना ‘पवन’
क्या ख़बर थी रात को भी दिन ही बतलाएँगे लोग