यूँ सड़क तक छोड़ने भी आपको आएँगे लोग
आपकी निंदा ही करते लौट कर जाएँगे लोग
हर मसीहा को यहाँ सूली पे लटकाएँगे लोग
और फिर अपने किए पर ख़ुद ही पछताएँगे लोग
होंठ सी कर आदमी को बोलने देंगे नहीं
बोलना तोतों को लेकिन ख़ूब सिखलाएँगे लोग
हमने थे बाँटे यहाँ जो रोशनी के वास्ते
क्या पता था उन दीयों से आग भड़काएँगे लोग
जिनकी आँखों पर भरोसा था तुझे इतना ‘पवन’
क्या ख़बर थी रात को भी दिन ही बतलाएँगे लोग