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यूँ हर सर चढ़ के हर इक मौज-ए-बला बोलेगी / 'महताब' हैदर नक़वी

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यूँ हर सर चढ़ के हर इक मौज-ए-बला बोलेगी
हम जो ख़ामोश रहेंगे तो हवा बोलेगी

बोलता रहता है जो आज सर-ए-शाख़-ए-अना
चुप सी लग जाएगी जिस रोज़ फ़ना बोलेगी

तुझ से उम्मीद किसे है मेरी लैला-ए-हयात
महमिल-ए-नाज़ से क्या चश्म-ए-अता बोलेगी

वो तो रहता है यूँ ही अपने गुलिस्तान में गुम
लब-ए-ख़ामोश से क्या बर्ग-ए-हिना बोलेगी

मौसम-ए-नारा-ए-बुलबुल भी कभी आएगा
इस से मायूस न हो ख़ल्क-ए-ख़ुदा बोलेगी