भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूसुफ़ / मुइसेर येनिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस वक़्त जब धरती
करवट ले रही है एक सुबह में
जंगली जैतून के दरख़्त से चिपका
मेरा अकेलापन
हवाओं की बाँहों में
सुकून तलाश रहा है

वेदना का कुत्ता जो आशीष देता है
मेरे हृदय को
अब आकाश के सामने जा खड़ा है
मैं अपनी पीड़ा को रोऊँगी

यह आवाज़
मेरे हृदय की मजबूत दीवारों के बन्द दरवाज़ों
और लोहे की ज़ंजीरों से
निकल रही है

मैं चिड़ियों की भाषा में
बोलती हूँ
लोगों की उस विदा के बारे में
जो कीचड़ में हो रही है

मैं तुम्हारे लिए एक बच्ची थी
मैं बड़ी नहीं हुई हूँ

अब मैं खेल रही हूँ
ख़ुशी के आगे
और गिन रही हूँ : एक ख़ुशी ,
दो खुशियाँ
एक ख़्वाहिश , दो ख़्वाहिशें ....

अब इस खेल में
बस
तुम्हें ढूँढ रही हूँ यूसुफ ।