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यूसुफ़ / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
इस वक़्त जब धरती
करवट ले रही है एक सुबह में
जंगली जैतून के दरख़्त से चिपका
मेरा अकेलापन
हवाओं की बाँहों में
सुकून तलाश रहा है
वेदना का कुत्ता जो आशीष देता है
मेरे हृदय को
अब आकाश के सामने जा खड़ा है
मैं अपनी पीड़ा को रोऊँगी
यह आवाज़
मेरे हृदय की मजबूत दीवारों के बन्द दरवाज़ों
और लोहे की ज़ंजीरों से
निकल रही है
मैं चिड़ियों की भाषा में
बोलती हूँ
लोगों की उस विदा के बारे में
जो कीचड़ में हो रही है
मैं तुम्हारे लिए एक बच्ची थी
मैं बड़ी नहीं हुई हूँ
अब मैं खेल रही हूँ
ख़ुशी के आगे
और गिन रही हूँ : एक ख़ुशी ,
दो खुशियाँ
एक ख़्वाहिश , दो ख़्वाहिशें ....
अब इस खेल में
बस
तुम्हें ढूँढ रही हूँ यूसुफ ।