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ये अहद क्या है की सब पर गिराँ गुज़रता है / ज़फ़र अज्मी

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ये अहद क्या है की सब पर गिराँ गुज़रता है
ये क्या तिलिस्म है क्या इम्तिहाँ गुज़रता है

वो क़हत-ए-लुत्फ़ है दर दम तेरे फ़क़ीरों पर
हजार वस्वसा आतिश-बजाँ गुज़रता है

जो ख़ाक हो गए तेरे फ़िराक़ में उन का
ख़याल भी कभी ऐ जान-ए-जाँ गुज़रता है

जब उस की बज़्म से चल ही पड़े तो सोचना क्या
कि अर्सा-ए-ग़म-ए-हिज्राँ कहाँ गुज़रता है

कभी वो चेहरा-ए-मानूस भी दिखाई दे
गली से रोज़ नया कारवाँ गुज़रता है

‘ज़फर’ बसंत भी है और बहार की रूत भी
फ़लक पे तख़्ता-ए-गुल का गुमाँ गुज़रता है