भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कैसी चारागरी है इलाज कैसा है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
ये कैसी चारागरी है इलाज कैसा है
पिला के ज़हर कहे है मिज़ाज कैसा है।
ये मानता हूं तिरा कल था ताबनाक बहुत
मगर ये गौ़र भी कर तेरा आज कैसा है।
जो कोई खाता है करता है ज़हर-अफ्श़ानी
हमारे अह्द का यारों अनाज कैसा है।
बदल के भेस महल से निकल कभी शब को
जो देखना है तिरा राम राज कैसा है।
मैं सोचता हूं उन्हें क्या जवाब दूं 'रहबर`
वो पूछते हैं तुम्हारा मिज़ाज कैसा है