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ये कैसी चारागरी है इलाज कैसा है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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ये कैसी चारागरी है इलाज कैसा है
पिला के ज़हर कहे है मिज़ाज कैसा है।

ये मानता हूं तिरा कल था ताबनाक बहुत
मगर ये गौ़र भी कर तेरा आज कैसा है।

जो कोई खाता है करता है ज़हर-अफ्श़ानी
हमारे अह्द का यारों अनाज कैसा है।

बदल के भेस महल से निकल कभी शब को
जो देखना है तिरा राम राज कैसा है।

मैं सोचता हूं उन्हें क्या जवाब दूं 'रहबर`
वो पूछते हैं तुम्हारा मिज़ाज कैसा है