भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये कौन आ गया यहाँ / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
ये कौन आ गया यहाँ कि छा गया ख़ुमार है
बहार तो नहीं मगर नफ़स-नफ़स बहार है
न दोस्तों न दुश्मनों में उसका कुछ शुमार है
क़तार में खड़ा हुआ वो आज पहली बार है
मैं जिस ज़मीं पे हूँ खड़ी ग़ुबार ही ग़ुबार है
दिलों में सबके नफरतें, ख़ुलूस है न प्यार है
चमन में कौन आ गया जिगर को अपने थामकर
तड़प रही हैं बिजलियाँ, घटा भी अश्कबार है
मुकर रहे हो किस लिये, है सच तुम्हारे सामने
तुम्हारी जीत, जीत है, हमारी हार, हार है
है कौन जिससे कह सकूँ मैं अपने दिल का माजरा
मैं सबको आज़मा चुकी कोई न राज़दार है