भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये क्या जाने में जाना है / सीमाब अकबराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा होकर|
मैं तब जानू मेरे दिल से चले जाओ जुदा होकर|
 
क़यामत तक उड़ेगी दिल से उठकर ख़ाक आँखों तक,
इसी रास्ते गया है हसरतों का काफ़िला होकर|
 
तुम्हीं अब दर्द-ए-दिल के नाम से घबराये जाते हो,
तुम्हीं तो दिल में शायद आए थे दर्द-ए-आशियाँ होकर|
 
यूँ ही हमदम घड़ी भर को मिला करते तो बहतर था,
के दोनो वक़्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा होकर|