ये ख़ामोशी जो बहती है म'आनी के दहाने तक / रवि सिन्हा
ये ख़ामोशी जो बहती है म'आनी के दहाने<ref> मुँह (mouth)</ref> तक
के ज़ाहिर कौन होता है तिरी नज़रों में आने तक
कहाँ तक हर्फ़<ref>अक्षर (letter)</ref> को अल्फ़ाज़ <ref>शब्दों (words)</ref> को मिसरे<ref>वाक्य (sentences)</ref> को मक़सद दूँ
कोई तो बात ऐसी हो जो ख़ुद पहुँचे ठिकाने तक
न कहने की वजह कोई न सुनने की वजह कोई
तिरी महफ़िल में बैठे हैं कोई क़िस्सा सुनाने तक
ये दिल तड़पा है कुछ यूँ भी कि क्या कोई वजह ढूँढ़े
कहाँ ये बर्क़<ref>बिजली (lightening)</ref> ठहरी है किसी बादल के छाने तक
हक़ीक़त मुन्तज़िर<ref>इन्तेज़ार में (waiting)</ref> पिन्हाँ<ref>छुपा हुआ (hidden)</ref> कोई देखे तो दुनिया है
ख़ला<ref>शून्य, अन्तरिक्ष (nothingness, space)</ref> इम्काने-आलम<ref>सृष्टि की सम्भावना (possibility of the Universe)</ref> है किसी शाहिद<ref>साक्षी ( witness)</ref> के आने तक
सितारों से भी आगे ख़ैर दुनिया है तो जाओगे
तख़य्युल<ref>कल्पना ( imagination)</ref> क़ैद है लेकिन तिरा क्यूँ इस ज़माने तक
हमा-तन-गोश<ref>कान लगाए हुए (all ears)</ref> हर कोई के सरगोशी<ref>कानाफूसी (whisper)</ref> का आलम है
कोई अफ़वाह पहुँची है अज़ल<ref>सृष्टि का आरम्भ (beginning of time)</ref> से इस मुहाने तक