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ये ग़ज़ल सुन जरा, कुम्भ में स्नान कर / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
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ये ग़ज़ल सुन जरा, कुम्भ में स्नान कर।
मिट गये गम सभी, देख कर शान कर।।
लग रहे दस बरस, से यहाँ हर बरस।
हो रही है खुशी, आज यह जानकर।।
कर रहे हैं चयन, हम सभी को यहाँ।
धन्य हैं वे सभी, ज्ञान से मान कर।।
दूर से आ गये, आज सुनने ग़ज़ल।
बज रही तालियाँ, भीड़ में ध्यान कर।।
हो रहे हैं मिलन, शाम से रात तक।
कल सुबह तक चले, साथ गुणगान कर।।