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ये ज़र्द फूल ये काग़ज़ पे हर्फ गीले से / शहबाज़ ख्वाज़ा

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ये ज़र्द फूल ये काग़ज़ पे हर्फ गीले से
तुम्हारी याद भी आई हज़ार हीले से

बदन का लम्स हवा को बना गया ख़ुश्बू
नज़र के सेहर से मंज़र हूए नशीले से

ये जिंदगी भी फ़कत रेत का समंदर है
कभी निगाह जो डालो फ़ना के टीले से

ये शायरी मुझे ‘शहबाज’ यूँ भी प्यारी है
कि मेरा ख़ुद से तअल्लुक़ है इस वसीले से