भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये ठीक है के बहुत वहशतें भी ठीक / ऐतबार साज़िद
Kavita Kosh से
ये ठीक है के बहुत वहशतें भी ठीक नहीं
मगर हमारी ज़रा आदतें भी ठीक नहीं
अगर मिलो तो खुले दिल के साथ हम से मिलो
के रस्मी रस्मी सी ये चाहतें भी ठीक नहीं
तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं
किसी से इतनी मगर क़ुर्बतें भी ठीक नहीं
दिल ओ दिमाग़ से घायल हैं तेरे हिज्र-नसीब
शिकस्ता दर भी हैं उन की छतें भी ठीक नहीं
क़लम उठा के चलो हाल-ए-दिल ही लिख डालो
के रात दिन की बहुत फ़ुर्क़तें भी ठीक नहीं
तुम 'ऐतबार' परेशाँ भी इन दिनों हो बहुत
दिखाई पड़ता है कुछ सोहबतें भी ठीक नहीं