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ये तग़य्युर रू-नुमा हो जाएगा सोचा न था / सिराज अजमली

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ये तग़य्युर रू-नुमा हो जाएगा सोचा न था
उस का दिल दर्द-आश्ना हो जाएगा सोचा न था

नितनए रागों की थी जिस साज़-ए-हस्ती से उम्मीद
वो भी बे-सौत-ओ-सदा हो जाएगा सोचा न था

यूँ सरापा इल्तिजा बन कर मिला था पहले रोज़
इतनी जल्दी वो ख़ुदा हो जाएगा सोचा न था

वो तअल्लुक़ जिस को दोनों ही समझते थे मज़ाक़
इस क़दर बा-क़ाएदा हो जाएगा सोचा न था

जिस ‘सिराज’-ए-अज्मली से थीं उम्मीदें बे-शुमार
वो भी नज़र-ए-वाह हो जाएगा सोचा न था