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ये नफ़रत का असर कब तक रहेगा / सुनीता काम्बोज
Kavita Kosh से
ये नफ़रत का असर कब तक रहेगा
नगर सहमा हुआ कब तक रहेगा
हक़ीक़त जान जाएगा तुम्हारी
ज़माना बेख़बर कब तक रहेगा
बग़ावत लाज़मी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा
ये इक दिन हार जाएगी ही लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा
ज़मीं पर लौट कर आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा
यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें
मेरा सूना ये घर कब तक रहेगा
लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना ये शजर कब तक रहेगा