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ये बाग़, ये नम मिट्टी / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
ये बाग़, ये नम मिट्टी,
ये चमेली की ख़ुशबू, ये चांदनी रात
ये तब भी जगमगाएगी
जब मैं बीत जाऊंगा रोशनी से
क्योंकि ये मेरे आने से पहले थी
और बाद में मेरा हिस्सा न थी -
इस मूल की सिर्फ़ एक प्रतिलिपि
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