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ये माना कि दुश्वारियों ने है घेरा / गरिमा सक्सेना
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ये माना कि दुश्वारियों ने है घेरा
मगर कब रहा है हमेशा अँधेरा
मिटेगा निशा का अँधेरा समय से
रखो धैर्य होगा समय से सवेरा
उड़ें क्यों न पंछीे हमेशा गगन में
करेंगे मगर शाख पर ही बसेरा
सफ़र ख़त्म होगा सभी का यक़ीनन
जहां ये न तेरा, जहां ये न मेरा
दिया था सुरक्षा का दायित्व जिसको
वही आज साबित हुआ है लुटेरा