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ये सच है कि हरेक से मिलता नहीं हूँ मैं / मोहम्मद इरशाद

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ये सच है कि हरेक से मिलता नहीं हूँ मैं
अपने मयार से कभी गिरता नहीं हूँ मैं

मुझ से हैं कई लोग इसी बात से ख़फा
चलता हूँ सर उठा के यूँ झुकता नहीं हूँ मैं

दुनिया के इस बाज़ार में ख़रीदार है बहुत
कीमत लगाते हैं पर बिकता नहीं हूँ मैं

मंज़िल पे अपनी जो के पहूँचे नहीं है ख़ुद
उनकी बताई राह पे चलता नहीं हूँ मैं

जो कुछ दिया है मुझको एहसान है उसका
औरों को ख़ुश देख के जलता नहीं हूँ मैं

‘इरशाद’ जो भी होना है होकर रहेगा वो
अफसोस कर के हाथों को मलता नहीं हूँ मैं