भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये साधक / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
ठाट-बाट के सुविधा-भोगी
ये साधक-आराधक धन के
निहित स्वार्थ में लीन निरंतर
बने हुए हैं बाधक जन के
केंद्र-बिंदु पर बैठे-ठहरे
चक्र चलाते हैं शोषण के
रचनाकाल: ०६-१०-१९७६