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ये हवा, कैसी भी हो, चलती तो है / सर्वत एम जमाल
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ये हवा, कैसी भी हो, चलती तो है
रात काली ही सही ढलती तो है
है ग़ुलामों में भी आज़ादी की ज्योति
आग मद्धम है मगर जलती तो है
हम बहुत ख़ुश हैं, यही कुछ कम है क्या
आप को भी बेबसी खलती तो है
ख़ुद फ़रेबी ऐसी शय है, जो सदा
लाख बचिए, आप को छलती तो है
तुम उगा लो रोशनी के लाख पेड़
तीरगी माहौल में पलती तो है
ख़्वाब वालो आओ, लेकिन सोच लो
नींद आँखों से कभी टलती तो है