भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यों तो होँठों से कुछ न कहता है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
यों तो होँठों से कुछ न कहता है
प्यार नज़रों में उसकी रहता है
उसके वादे का एतबार किया
यह समझकर कि झूठ कहता है
कौन समझेगा दिल की बेताबी
ख़ून आँखों से जब न बहता है!
प्यार की हर सज़ा क़बूल हमें
दिल तेरी बेरुख़ी न सहता है
कोई मिलता नहीं हो तुझसे, गुलाब!
फिर भी अनजान नहीं रहता है