भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यों ही / सू शि
Kavita Kosh से
|
पाले से
मेरे केश
झूलते हवा में
छोटे से बरामदे में
बीमार-सा लेटा
बेंत की चारपाई पर
वैद्य ने इस वसन्त
बताई है मुझे दिव्य नींद
संभल कर बजाता
ताओ भिक्षु
पांचवे पहर का गजर।
मूल चीनी भाषा से अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी