भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

योजनाओं का शहर-1 / संजय कुंदन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब उसने बताया कि
वह एक योजना के मुताबिक
विनम्र बन रहा है, तो मैं चकराया
उसके मुस्कुराने के अंदाज़ और
हाथ मिलाने के ढंग पर संदेह हुआ

मुझ से विदा लेकर
वह राजपथ की ओर मुड़ा
और उन खम्भों के बीच
तनकर खड़ा हो गया
जो योजना के तहत लगाए गए थे
सड़क के किनारे

पहली बार मैंने एक खम्भे की हँसी सुनी थी।