पुरुष है नारी का कर्तव्य 
पुरुष ही है उसका अधिकार
रख सका यदि न प्रिया को सुखी 
पुरुष के पौरुष को धिक्कार 
बना संक्रामक और असाध्य 
नारियों के शोषण का रोग 
क्योंकि घर की लक्ष्मी को क ई
पैर की जूती कहते लोग 
पत्नियों ने पतियों के हेतु 
किए हैं कितने ही बलिदान
पत्नियों को पतियों से मिला
किन्तु सर्वदा घोर अपमान 
हो रहे मंचों पर व्याख्यान 
पुस्तकों में अंकित हों लेख 
किन्तु इसका क्रियात्मक रूप
कहीं भी सका न कोई देख 
नारियों के हाथों है रुकी 
धार्मिकता-आस्तिकता सभी
पुरुष-मन है षडयन्त्र-प्रवीण 
छोड़ सकता न दुष्टता कभी 
अभी तो है प्रतिशत अति न्यून 
बढ़ेगी कलियुग में गति जभी 
छटेगी क्रांति-पर्व के प्रखर 
भव्य उद्घाटन की तिथि तभी
जागने से सोने तक कार्य 
गिने जा सकते उसके नहीं
किन्तु आभार जनित दो शब्द
न कोई कहता उससे कहीं 
लिया जिसने रक्षा का भार 
उसी को त्रस्त यदि रखे त्रास 
बने 'गृहलक्ष्मी' , 'रानी' शब्द 
कदाचित करने को उपहास 
गृहस्थी के राजा तो सदा 
भ्रमण कर सकते हैं सर्वत्र 
किन्तु रानी को देने पड़ें 
उन्हें मौखिक आवेदन-पत्र
जिसे कहते हैं अर्द्धांगिनी
सेविका के अतिरिक्त न और
गूढ़ है कितना पुरुष पुराण 
शब्द कुछ और अर्थ कुछ और 
न जाने किन हाथों से लिखा
विधाता ने नारी का भाग्य 
उसे करना पड़ता स्वीकार 
सर्वथा जो होता है त्याग्य 
पुरुष का क्या है वह तो नित्य
मधुप-सा फिरता है स्वच्छन्द
किसी भी नारी से कर रमण
उसे मिलता मौलिक आनन्द 
न उस पर प्रतिबन्धों का बोझ 
न उस पर मर्यादा का भार 
न उस पर अंकुश कोई अन्य 
न उस पर आरोपों की मार 
अहं पौरुष का लेकर पुरुष
नित्य कर सकता है व्यभिचार
किन्तु यदि नारी ऐसा करे 
चीख पड़ता समस्त संसार
पुरुष के लिए हमारी जाति 
मनोरंजन का है सामान 
इसी के तन के जाये पुरुष
भला कब रखते इसका ध्यान
पुरुष की दृष्टि देखती रूप 
पुरुष का प्रेम दिखावा मात्र
पुरुष की क्षुधा-शान्ति ही सत्य
पुरुष का साथ छलावा मात्र