भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यौवन की स्मृति (दो) / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
तुम कविता में इतना क्यों इतराती हो
क्या बात है जो मुझे नहीं बतलाती हो
शब्द-शब्द से नश्तर-तीर चुभोती हो
हाव-भाव से पीर हृदय में बोती हो
हाँ, मैं दोषी हूँ, समक्ष तुम्हारे, ससि रानी
छोड़ तुम्हें परदेस गया मैं, ओ मसि रानी
पर, इस बीच जीवन ने हमें कितना बदला
पीट-पीट कर बना दिया उसने हमें तबला
क्या चाहो तुम मुझ से अब, मैं क्या जानूँ
बात कहो गर बिल्कुल सीधी तो पहचानूँ
(रचनाकाल: 2002)