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रँगून के राजकुमार की काया में प्रवेश / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय

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सेन्दूरफल की भाँति मुख दीप्त, मानो आलता
रचित हो पगतल करतल ऐसे कुँकुम बरन
सोभ रहे थे अद्वितीय
ललित गठित भुजाएँ, जँघा, कटि
बिशालाक्ष कोरों से रतनार, ऐसा था
रँगून के राजकुमार का रूप
दर्शक बिस्मित मानता ही न था कि मृत है राजकुमार

उदर मेरुमूल तक धँसा, अस्थि की गठरी कलेवर
रह गया, दृष्टि क्षीण होते होते रह गई है आलोक की एक
रेख भर
तिब्बतीबाबा पुरातन वदन रह गए थे जब
रँगून की रानी से माँग ली रँगून के राजकुमार की काया
भूतपूर्व तनुज में प्राण देखने को माँ देने को तैयार थी
अपना पूरा राज

परकाया प्रवेश खेला है नित का
नित्य नबीन तन रहता है सदा
पुरुष स्त्री में प्रत्येक रात्रि प्रवेश कर रहा
नक्षत्रों में ग्रह
कुसुमों में भ्रमर
ऋषभ ब्रह्मो की ध्वनि मुझमें

ऋषि और कवि स्त्री पुरुख पशु पादप
कहाँ नहीं कर सकते परकाया प्रवेश, द्वार खुले है
सदैव उनकी कथा प्रथम पुरुष में चला करती है
जो इन पर दोष लगाते है
वह कामुक है किन्तु केलि कभी कर नहीं पाए ।