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रँग गई पग-पग धन्य धरा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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रँग गई पग-पग धन्य धरा,---
हुई जग जगमग मनोहरा ।
वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर,
तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर
खुली रूप - कलियों में पर भर
स्तर स्तर सुपरिसरा ।
गूँज उठा पिक-पावन पंचम
खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम,
सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम
वन श्री चारुतरा ।