भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंगीं नजरों का नगर / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
रंगीं नजरों का नगर
वो सब्ज बाग़ों का नगर
शीतल हवाओं का नगर
रिमझिम फुहारों का नगर
सबको निमंत्रण दे रहा
नित नित बहारों का नगर
पेड़ों के घूँघट से सजी
दुल्हन सी सड़कों का नगर
सरसब्ज वादी में पल रहा
कुदरत के खाबों का नगर
है खुशगवार आबो हवा
यह है रोमाँसों का नगर
इकसार मौसम की तरह
यह सरल लोगों का नगर
फूलों फूलों और सब्ज़ा, के
अक्षय भंडारों का नगर
बाज़ार में नित रौनके़
यह चहल-पहलों का नगर
यह हर दिशा में बढ़ रहा
फैले उद्योगों का नगर
है ज्ञान, धन की देवियाँ
उनकी कृपाओं का नगर
यह धर्म, दर्शन, आस्था
अदबों कलाओं का नगर
बंगलौर उर्मिल को लगा
निश्चित बहिश्तों का नगर।