भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग-गंध का गाँव / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
एक प्रवासी
भँवरा है
रंग-गंध का गाँव है
फूलों को
वह भरमाता है
मीठी-मीठे
गीत सुना कर
और हृदय में
बस जाता है
मादक-मधु
मकरंद चुरा कर
निष्ठुर,
सुधि की धूप बन गया
विरह-गीत की छाँव है
बीत रही जो
फूलों पर वह
देख-देख कलियां
चौकन्ना
सहज नहीं है
उसका मिल
बैठा
अंतर में जो बन्ना
पता चला
वह बहुत गहन है
उम्र कागज़ी नाव है